मायोपिया के क्या है – लक्षण, कारण, इलाज व बचाव के तरीके ?
अकसर क्या हो व्यस्क और क्या हो बच्चे सबके द्वारा मोबाइल फ़ोन और लैपटॉप की स्क्रीन पर ज्यादा समय बिताया जाता है, जिसकी वजह से उनके आँखों पर गलत प्रभाव पड़ता है, और इन उपकरणों का अधिक इस्तेमाल करने के कारण उन्हें दूर की चीजों को देखने में समस्या का सामना करना पड़ता है। वहीं इस समस्या को मायोपिया के नाम से जाना जाता है, इसके अलावा इस समस्या के क्या कारण है, इसके लक्षण किस तरह के नज़र आते है और इससे हम कैसे खुद का बचाव कर सकते है, इस संबंधी आज के लेख में बात करेंगे ;
मायोपिया के क्या कारण है ?
- खराब जीवनशैली के कारण आपको पास की चीजों को देखने में समस्या का सामना करना पड़ता है।
- आँखों के बॉल की लंबाई का बढ़ना।
- कॉर्निया का बेहद सुडौल होना।
- मायोपिया अनुवांशिक कारणों में भी गिना जा सकता है।
- शराब और सिगरेट का सेवन करने के कारण।
- प्राकृतिक रौशनी में कम से कम समय बिताने के कारण।
- टीवी, मोबाइल या लैपटॉप के सामने अधिक समय बिताने के कारण।
- पढ़ते या स्क्रीन पर कुछ देखते समय आवश्यक दूरी का ध्यान न रखने के कारण आपको पास की चीजों को देखने में समस्या का सामना करना पड़ता है।
मायोपिया क्या है ?
- मायोपिया आंखों की निकट दूरदृष्टि से जुड़ी एक समस्या है। इस स्थिति में आप दूर की वस्तुओं को स्पष्ट तरीके से नही देख पाते है, परंतु आपको पास की वस्तु स्पष्ट तौर पर दिखाई देती है।
- मायोपिया की उपस्थिति में आंखों के कॉर्निया का आकार बदलने लगता है और इसी के कारण हमें केवल पास की वस्तुएं ही साफ दिखाई देती है। मायोपिया किसी भी उम्र में हो सकता है, परंतु आप करेक्टीव लेंस पहनकर या फिर आंखों की सर्जरी करवाकर इस समस्या को दूर कर सकते है।
- वहीं यह समस्या आमतौर पर 40 वर्ष की आयु के लोगों को अपनी गिरफ्त में लेती है, लेकिन आजकल के लाइफस्टाइल के कारण यह समस्या बच्चों में भी आम हो गई है। यही वजह है कि जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते है, उनकी आंखों की स्थिति खराब होती जाती है और एक निश्चित उम्र तक पहुंचने तक वह भी मोयोपिया के शिकार हो जाते है। हालांकि कुछ लोगों का मानना है कि मायोपिया को प्राकृतिक रूप से भी ठीक किया जा सकता है, लेकिन अध्ययनों से यह पता चला है कि लोगों के द्वारा इस्तेमाल की जाने वाली प्राकृतिक प्रक्रियाएं और विधियां मायोपिया पर पूरी तरह से असरदार नहीं है, लेकिन यह प्राकृतिक प्रक्रियाएं बढ़ते बच्चों में इसकी प्रगति को धीमा कर सकती है।
- अगर आप दूर की चीजों को देखने में पूरी तरह से असमर्थ है, तो इसके लिए आपको अपने आँखों के लिए मायोपिया का इलाज करवाना चाहिए।
मायोपिया के दौरान किस तरह के लक्षण नज़र आते है ?
- दूर की वस्तुओं का धुंधला दिखाई देना।
- आंखों में खिंचाव और सिरदर्द का अहसास होना।
- टेलीविजन, मूवी स्क्रीन या क्लास की सबसे पहली सीट पर बैठने की जरूरत महसूस करना।
- ठीक से देखने के लिए पलकों को बंद या आंशिक रूप से बंद करने की आवश्यकता का महसूस करना।
- विशेष रूप से रात में वाहन चलाते समय देखने में कठिनाई होना। जिसे नाइट मायोपिया कहा जाता है।
- निश्चित भेंगेंपन की समस्या का सामना करना।
- बार-बार जरूरत से ज्यादा पलक को झपकाना।
- आँखों को बार-बार रगड़ना।
- आँखों में थकावट का अहसास होना आदि।
- आपकी आँखों में अगर इस तरह के लक्षण नज़र आए तो इससे बचाव के लिए आपको पंजाब में आंखों के स्पेशलिस्ट डॉक्टर का चयन करना चाहिए।
मायोपिया के कितने प्रकार है ?
मायोपिया को सामान्यतः तीन भागों में बाटा जाता है, जिनके बारे में हम निम्न में चर्चा करेंगे ;
- पैथोलॉजिकल (Pathological) मायोपिया :
यह आंख की अक्षीय ऊंचाई, असामान्य और अत्यधिक विकास के कारण होता है। यह 6 साल की उम्र से पहले विकसित नहीं होता है।
- विद्यालय युग (School age) के दौरान आई मायोपिया की समस्या :
यह 6-18 वर्ष की आयु के भीतर होता है। यह देर किशोरावस्था से लेकर 20 की उम्र तक स्थिर माना जाता है।
- वयस्क की शुरुआत (Adult-onset) में आने वाली मायोपिया की समस्या :
इस मायोपिया की शिकायत 20 से 40 वर्ष के प्रारंभिक वयस्कों में देखने को मिलती है।
मायोपिया का निदान कैसे किया जा सकता है ?
- मायोपिया के निदान की बात करें, तो व्यस्को की इसके लिए, 40 साल की उम्र में पहली आँखों की जांच को करवाना चाहिए।
- 40 से 54 की उम्र के बीच हर 2 से 4 साल में फिर से आँखों की जाँच को करवाना।
- 55 से 64 आयु के बीच हर 1 से 3 साल के बीच आँखों की जाँच को करवाते रहना।
- यहां तक कि शुरुआती 65 साल की उम्र में हर 1 से 2 साल में अपने आँखों के चेकउप को करवाते रहना।
- वहीं बच्चों और किशोरों को, 6 वर्ष की आयु में मासिक जांच को करवाना।
- 3 साल की उम्र में अर्ली चेकअप को करवाना।
- पहली बार और स्कूल के समय के दौरान हर 2 साल पहले चेकउप करवाना।
मायोपिया का इलाज कैसे किया जाता है ?
- मायोपिया के इलाज के लिए नॉन-सर्जिकल इलाज की बात करें, तो इसमें चश्मा और कॉन्टेक्ट लेंस का प्रयोग शामिल है। चश्मा या कॉन्टेक्ट लेंस की मदद से प्रकाश को रेटिना पर केंद्रित किया जाता है। चश्मा या कॉन्टेक्ट लेंस के निगेटिव नंबर मायोपिया की गंभीरता की ओर इशारा करते है। मायोपिया जितना गंभीर होगा, निगेटिव नंबर उतना ही अधिक होगा।
- वहीं मायोपिया के लिए चश्में की बात करें, तो दृष्टि को साफ और तेज करने का सबसे आसान और सुरक्षित तरीका है। चश्मा में कई प्रकार के लेंस का इस्तेमाल किया जाता है। इसमें सिंगल विजन, बाई-फोकल्स और प्रोग्रेसिव मल्टी-फोकल लेंस आदि शामिल है।
- मायोपिया के लिए कॉन्टेक्ट लेंस जोकि सीधे आँखों में लगाया जाता है। ये लेंस कई प्रकार के पदार्थों से बने होते है। इनकी डिजाइन भी अलग-अलग होती है, जिसमें मुलायम, कठोर, टोरिक और मल्टी-फोकल आदि शामिल हैं।
- मायोपिया में चश्मा या कॉन्टेक्ट का इस्तेमाल प्रभावशाली साबित हो सकता है। लेकिन इनका इस्तेमाल करने से पहले इस बारे में अपने डॉक्टर से एक बार जरूर सलाह लें। और इनके फायदों और संभावित जोखिमों के बारे में जानकारी प्राप्त करें। फिर संतुष्टि होने के बाद ही इनका प्रयोग करें।
- मायोपिया के लिए सर्जिकल इलाज का सहारा लेना, और इसमें चश्मा या कॉन्टेक्ट लेंस का प्रयोग नहीं किया जाता है। ऐसे में वे सर्जरी का चुनाव करते है। सर्जरी से मायोपिया का इलाज कई तरह से किया जाता है। इसमें लेजर इन सीटू किरेटोमिल्युसिस (लेसिक), लेजर असिस्टेड सबएपिथेलियल किरेटोमिल्युसिस, फोटोरिफ्रेक्टिव केरटेक्टोमी और इंट्राऑकुलर लेंस प्रत्यारोपण शामिल है।
- लेजर असिस्टेड सबएपिथेलियल किरेटोमिल्युसिस से भी मायोपिया का इलाज किया जा सकता है।
- फोटोरिफ्रेक्टिव केराटेक्टोमी से मायोपिया का इलाज करना।
- इंट्राऑकुलर लेंस प्रत्यारोपण से मायोपिया का इलाज करवाना।
- अगर मायोपिया की समस्या आपके आँखों में काफी गंभीर हो गई है, तो इससे बचाव के लिए आपको सर्जिकल इलाज की प्रक्रिया का चयन करना चाहिए। और आप चाहे तो इस सर्जरी को मित्रा आई हॉस्पिटल से भी करवा सकते है।
निष्कर्ष :
मायोपिया की समस्या गंभीर ज्यादा न बने इसके लिए आपको इसके लक्षणों का खास ध्यान रखना चाहिए और किसी भी तरह के इलाज का चयन करने से पहले एक बार अनुभवी आँखों के डॉक्टर से जरूर सलाह लें।
इसके अलावा अगर आप मायोपिया की समस्या से खुद का बचाव करना चाहते है, तो इसके लिए आपको चश्में या कंटेंट लेंस का सहारा लेना चाहिए।